बदलता हुआ मौसम, यानी एक मौसम का दूसरे मौसम से मिलना ऋतु-संधि काल कहलाता है। भारत जैसे देश में जहां छह ऋतुएं हैं, हर दो-तीन महीने बाद मौसम का मिजाज बदल जाता है, यानी यहां पर छह ऋतु संधियां पड़ती हैं एक बरस में। छह ऋतुएं कालक्रम में बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर एक-एक करके एक के बाद एक अस्तित्व में आती हैं, परवान चढ़ती हैं और ढल जाती हैं। किसी भी एक ऋतु का आगमन दूसरी ऋतु के जाने का कारण बनता है। यही काल ऋतु संधि काल के नाम से जाना जाता रहा है।
ऋतु या मौसम संधि काल में मौसम का ऋतु या मौसम संधि काल में मौसम का मिजाज़ काफी तेजी से बदलता है। कोई मौसम भी ऐसा नहीं है जो खुशी, उल्लास उमंग लेकर न आता हो। हर ऋतु का अपना अलग ही महत्व है। जितनी महत्त्वपूर्ण सर्दी है, उतनी ही महत्त्वपूर्ण गर्मी या वर्षा हैं। वसंत, हेमंत और शिशिर का महत्त्व प्रकृति पुस्तिका के पन्नों पर उसी स्याही लिखा है तथा इनका महत्व भी कम कर नहीं आंका जा सकता। बसंत यदि मौसम को खुशगवार बनाता तो गर्मी बीजों के अंकुरण के लिये जरूरीहैफसलों के पकने के लिए गर्मी आवश्यक है। शरद और शिशिर शारीरिक ऊर्जा, क्षमता एवं खानपान के लिए अच्छे हैं तो वर्षा वातावरण को नम बनाकर खुश्की को खत्म करती है और फसलों की वृद्धि में सहायक होती है। हेमंत पुराने आवरण और पत्तों को समेट कर नयी कोपलों को आने का न्यौता देता है और उनका मार्ग प्रशस्त करता है।
हर मौसम का अपना अलग ही खान-पान एवं पहनावा है और एक तरह से ऋतु परिवर्तन जीवन को नीरस होने से बचाता है। रस बांटते और रस समेटते मौसमों के मध्य फैशन, आधुनिकता और लापरवाही के चलते कई बार खुशी भी दुःख गम में बदल जाती है। खासतौर पर स्वास्थ्य की दृष्टि से ऋतु संधि काल अधिक सतर्कता की मांग करते हैं।
तंदुरुस्ती हजार नेमत' की कहावत गलत नहीं है। यदि तन स्वस्थ है तो मन आनंदित एवं उल्लासमय रहता है। यदि शरीर स्वस्थ, बलवान एवं निरोगी है तो मौसम के बदलते मिजाज का पता नहीं चलता अन्यथा सुखद लगने वाला बदलता मौसम परेशानी का सबब भी बन जाता है। युवा एवं ऊर्जावान युवकों की रोग प्रतिरोधी क्षमता काफी अधिक होती है अतः ऋतु संधिकाल उन पर ज्यादा असर नहीं डाल पाता मगर बच्चे और बूढे यदि इस ऋतु-संधिकाल में पर्याप्त सावधानी न रखें तो उन्हें बदलता मौसम परेशान किए बगैर नहीं छोड़ता।
दरअसल यह बदलता मौसम बहुत नाजुक होता है। ऊर्जा से भरे इस मौसम में बच्चे अपेक्षाकृत गर्मी का अनुभव करते हैं। और सुबह शाम भी उचित कपड़े पहनने में आनाकानी करते हैं। खास तौर पर छह से आठ बरस तक के बच्चे इस काल संक्रमण में गुलाबी ठण्ड के शिकार हो जाते हैं। प्रायः कमजोर, न्यूमोनिया के शिकार, सांस रोग के मरीज बच्चे तथा अपनी या मां-बाप की देखरेख में होने वाली लापरवाही के चलते कोल्ड एलर्जी के शिकार हो जाते हैं।
जुकाम, कोल्ड एलर्जी या इन्फ्लूएंजा के प्राथमिक लक्षणों में शरीर में हल्का दर्द होना, शरीर में सुस्ती या अकड़न का अनुभव, उनींदा महसूस करना, खेलने खाने में रूचि रहना, आंखों में भारीपन व जलन, तापमान का बढ़ना जिसे आम भाषा में बुखार नाम से जाना जाता है। इसके बाद नाक हल्की सी खुजली, गले में खिच खिच यानी खराश, पानी की अधिक प्यास लगना, खुश्की का अनुभव करना आदि लक्षण देखे जाते हैं। इस अवस्था में बच्चे खेलने की बार-बार ठण्डे पानी या खट्टी-मीठी चीजों फरमाइश अधिक करते हैंइस अवस्था में समुचित ध्यान न दिए
इस अवस्था में समुचित ध्यान न दिए जाने पर नाक से पानी आना, छींके आना. आंखों से पानी बहना शुरू हो जाता है और शरीर का तापमान 100 से 102 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। यह वह अवस्था है जहां ठण्ड से संक्रमित बच्चे पर पर्याप्त ध्यान दिए जाने की जरूरत होती
अन्यथा इस स्थिति में नाक का बंद होना, गले में कफ का जमना, सीने में जकड़न, सांस लेने में तकलीफ के साथ-साथ खांसी अथवा न्यूमोनिया तक की स्थिति आ जाती है। दमा से पीड़ित बच्चों की तकलीफ तो और भी भयंकर हो सकती है, अतः ऋतु संधिकाल में बच्चे का पर्याप्त परिवर्तन ध्यान रखे जाने की जरूरत होती है।
_ 'उपचार से सावधानी भली के सिद्धांत पर चलना समय की मांग और बुद्धिमानी है। थोड़ी सी सावधानी बरत कर आप अपनी और अपने नन्हे मुन्ने की तकलीफ दूर कर तकलीफ दूर कर सकती हैं। इस मौसम में खास तौर पर फरवरी-मार्च के महीने में बच्चे को पर्याप्त लादें कि वह पसीना-पसीना हो जाए। बच्चों सीना हो जाएबच्चों को सर्दी प्रायः पैर, कान या सर के माध्यम शिकार बनाती है, अतः सुबह शाम जूते अवश्य पहनाएं।
अवश्य ठंडे पानी में खेलने का मौका शिशु को तो कदापि न दें। नहाने में भी हल्का गुनग. ना डिटोल, सेवलॉन, नीम की पत्तियों वाला या अच्छी कंपनी का अच्छा सा एण्टीसेप्टिक मिला पानी प्रयोग में लाएं। रात्रि में पंखा चलाकर सोने में कोताही बरतेंफैशन या स्टेटस सिम्बल के चक्कर में बच्चों को कोल्ड डिंक या आरकम ३ दिनों जिद करने पर प्यार से समय या उसका ध्यान अन्य बातों में बांट दें
निश्चय ही एक अच्छी मां वही होती हैजो अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखे, अतः ऋतुसंधिकाल में बच्चों का पूरा ध्यान रखें ताकि उपचार की आवश्यकता ही न पड़े।
ऋतु संधिकाल में बीमार पड़ने से बचने के लिए हमें प्रकृति की ओर लौटना होगा। फास्ट फूड और बेमौसमी फलों, व्यंजनों आदि से बचते हुए प्रकृति के अनुपम उपहारों का प्रयोग, समयानुरूप खाना, पीना, भोजन, पानी, कपड़े प्रयोग में लाएं तो ऋतु संधिक. लि एक संकट व संक्रमण काल नहीं अपितु एक स्वास्थ्यप्रद माहौल लेकर आएगा।